इटावा। परिजात कल्पतरु कल्पवृक्ष वनस्पतिक नाम एडिन सोनिया डिजिटेट कुल मुंबई के मूल निवास दक्षिण अफ्रीका।
प्राप्त सूत्रों के अनुसार पारिजात के वृक्ष उत्तर प्रदेश में गिने-चुने स्थान में ही हैं दूसरों को जीवन देने वाला कल्पवृक्ष प्राकृतिकक्षरण की पीड़ा झेल रहा है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की रामनगर रेंज परिसर तथा देवा ललितपुर में एसएसपी आवास परिसर एवं इटावा फॉरेस्ट पार्क परिसर में सिर्फ दो वृक्ष बचे हैं जन सूत्री के अनुसार यह पौराणिक वृक्ष है इसे सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला वृक्ष कहा गया है इसके विषय में पौराणिक धारणा यह है कि समुद्र मंथन से प्राप्त 11 रत्नों में से एक रन कल्पवृक्ष वृक्ष भी था देवगढ़ इसे स्वर्ग ले गए जहां पर यह इंद्र के नंदनवन की शोभा बढ़ाया करता था पांडवों ने अज्ञातवास के समय अपने तपोवल से इसे स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए व अर्जुन ने अपने वाण से पाताल तक छिद्र कर इसे रोपित किया था।
आकार में यह वृक्ष काफी विशालकाय होता है तथा देखने में सेमल जैसा लगता है उसका तना काफी मोटा होता है अगस्त के माह में इसमें सफेद फूल आते हैं जो सूखने के उपरांत सुनहरे रंग के हो जाते हैं फॉरेस्ट पार्क इटावा में बचे दो वृक्ष सदियों पुराने हैं इन वर्षों में कभी फल नहीं देखा गया है। जिसकी वजह से इसे तैयार करना संभव नहीं है इसके अलावा प्राकृतिक पुनरूत्पादन मैं भी अल्पता अभी तक नहीं मिल सकी है वन विभाग द्वारा इसे बचाने एवं पुनरूत्पादन का सतत प्रयास जारी है।
इसको कल्पवृक्ष कहने का एक पहलू यह भी है कि इस वृक्ष की उपयोगिता बहुत है प्राचीन काल में इसके गूदे को सुखाकर आटे के रूप में प्रयोग किया जाता था छाल के रेशों से थैलों एवं वस्त्रो का निर्माण होता था तने के रस से मदिरा बनाई जाती थी तथा इसके विभिन्न भागों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता था इसके तने में रखे फल सड़ते नहीं है पुरातन काल में मनुष्य की जरूरत है अल्प थी इससे सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती थी इसी कारण इसका नाम कल्पवृक्ष पड़ा है।
इटावा प्रभागीय निदेशक अतुल कांत ने बताया हमारे परिसर में कल्पवृक्ष परिजात के दो पेड़ थे जिसमें से एक पेड़ प्रभागीय डीएफओ के आवास पर था जो पिछले वर्ष आंधी पानी के कारण धराशाई हो गया इसके बाद वन विभाग के कैंपस में एक पेड़ बचा हुआ है। यह दक्षिण अफ़्रीका का कॉन्टिनेंटल पेड़ है इसकी विशेषता है यह हमेशा हरा रहता है और इसकी विशेषता यह भी है कि यह वातावरण से पानी को स्वयं अवशेष कर लेता है अपना जीवन जीने के लिए। अफ्रीका की हार्ड कंडीशन गर्म तापमान में भी ये पेड़ बना रहता है। भारत में कई जगह यह पेड़ पाया जाता है।
पिछले वर्ष इटावा कचहरी में इस परिजात पौधे का वृक्षारोपण किया गया था जहां सदियों पुराना बट वृक्ष हुआ करता था पिछले वर्ष अधिक आंधी पानी के कारण वह गिर गया था इसके स्थान पर इस परिजात कल्पवृक्ष का वृक्षारोपण किया गया है।
वनविभाग में लगे वृक्ष पर महिलाओं की मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है माना जाता है इस वृक्ष की उम्र अधिक होती है इसीलिए इस वृक्ष की विधि विधान से महिलाएं पूजा अर्चना करती है जिससे वह अपने पति की उम्र भी इसी वृक्ष की भांति लंबी कर सकें। बताया गया कि इस पेड़ की उम्र 150 वर्ष से अधिक होती है।
उसे तरीके से तैयार नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस पर फल नहीं आता है लेकिन अभी हम लोग कर्नाटका बेंगलुरु से 50 पौधे लाए थे जिनका वृक्षारोपण कराया गया है। जिनका वाहन टिश्यू कल्चर विधि से तैयार किया गया था जिनको वहां से लाया गया था। 4 साल पहले उनका रोपित किया गया था काफी संख्या में उन पौधों का वृक्षारोपण सफल रहा है आगामी 20 जुलाई को इन पौधों का वृक्षारोपण किया जाएगा। यहां का वातावरण इन पौधों के लिए अच्छा है तो आसानी से यह पौधे तैयार हो जाते हैं।